पाखण्डी साधु, सन्त एवं महाराज

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अध्यात्म विषयपर अनेक घण्टे दूसरोंको वचन सुनानेवाले, परन्तु स्वतः धर्माचरण न कर, पाश्‍चात्योंका अन्धानुकरण कर, समाजको भ्रमित करनेवाले दाम्भिक लोग, दूसरोंको ब्रह्मज्ञान सुनाना; परन्तु उस ज्ञानको स्वयंआचरणमें न लाना, इस बात के मूर्त उदाहरण हैं।
चैतन्यके स्रोत देवताओंका घोर अनादर कर, हिन्दुओंकी श्रद्धाका भंजन करनेवाले ये पाखण्डी महाराज, ईश्‍वरभक्तिका सार करनेके स्थानपर समाजको ईश्‍वरसे दूर करनेका महापाप कर रहे हैं।
ऐसे दाम्भिक साधु-सन्तोंके कारण हिन्दू धर्मकी किस प्रकार अपरिमित ग्लानि हो रही है, इसकी जानकारी प्रस्तुत ग्रन्थमें दी गई है।

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