eBook – हिन्दू राष्ट्र आक्षेप एवं खण्डन (Hindi Edition) Kindle Edition

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आजकल ‘हिन्दू राष्ट्र’ शब्द ‘सेक्युलर भारत’में आक्षेपजनक माना जाता है । कुछ लोगोंको तो ‘हिन्दू’ इस शब्दके सन्दर्भमें ही मूलभूत आक्षेप है । ‘सेक्युलर’ विचारकोंका आक्षेप है कि ‘हिन्दू राष्ट्र’की कल्पना असंवैधानिक है ।’ सामाजिक सौहार्द की डींगे मारनेवालोंको ‘हिन्दू राष्ट्र संकीर्ण अथवा कट्टरपन्थी’ प्रतीत होता है । अहिन्दू पन्थियोंको लगता है कि ‘हिन्दू राष्ट्र’ उनकी प्रगतिमें रुकावट बनेगा । ये आक्षेप प्रातिनिधिक उदाहरण हैं, ऐसे अनेक आक्षेप ‘हिन्दू राष्ट्र’ इस शब्दको घेरे हुए हैं ।

इन आक्षेपोंकी वास्तविकता क्या है ? भारत स्वयम्भू ‘हिन्दू राष्ट्र’ है क्या ? एवं ‘हिन्दू राष्ट्र-स्थापनाके लिए कार्य करनेवालोंका मूलभूत विचार क्या है’, इन प्रश्नोंका उत्तर देने हेतु यह ग्रन्थ है ।
अनादि कालसे ‘हिन्दू राष्ट्र’ भारतकी पहचान थी । इस्लाम एवं ब्रिटिश शासनकालमें भी हिन्दू राजाओंने यह पहचान बनाए रखी थी । वर्ष १९४७ के विभाजनके उपरान्त भारतकी यह पहचान मिटानेका संविधान सभामें असफल प्रयत्न हुआ । तथापि वर्ष १९७६ में इंदिरा गांधीने असंवैधानिक पद्धतिसे भारतीय संविधानमें ‘सेक्युलर’ शब्द जोडकर भारतकी ‘हिन्दू राष्ट्र’ यह पहचान समाप्त कर दी । आज लगभग ४२ वर्षाेंमें ही विदेशी ‘सेक्युलर’वाद सम्माननीय है और ‘हिन्दू राष्ट्र’ निकृष्ट श्रेणीका माना जा रहा है । उससे भी आगे वर्तमानमें ‘हिन्दू राष्ट्र’का उच्चार ही अवैध सिद्ध करनेका दुष्ट प्रयत्न चल रहे हैं । यही स्थिति बनी रही, तो भविष्यमें भारत ‘अहिन्दू राष्ट्र’ होनेका भय है । ऐसे समयपर ‘हिन्दू राष्ट्र’ इस विषयके सन्दर्भमें आक्षेपोंका खण्डन करना आवश्यक है । यही इस ग्रन्थका प्रयोजन है ।

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