Weight | 0.114 kg |
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No of Pages | 96 |
ISBN | 978-93-5257-063-8 |
Language | Hindi |
Compilers | परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवले एवं श्री. रमेश हनुमंत शिंदे |
Group | 2876 |
पाखण्डी साधु-सन्तों से हो रही धर्महानि
₹95 ₹86
Also available in: Marathi
वर्तमान कलियुगमें साधु-सन्तोंकी परम्परामें अनेक पाखण्डी साधु-सन्त प्रवेश कर गए हैं ।
राष्ट्र और धर्म के कल्याण हेतु समर्थ रामदासस्वामी संन्यासी बने थे । अपने त्याग, अनासक्ति, वैराग्य, जनकल्याणकी उत्कट लगन और धर्मनिष्ठा के बलपर उन्होंने स्वधर्म सुरक्षित रखा और उसका विस्तार भी किया ।
उनके आदर्शोंपर चलते हुए आजकी विकट स्थितिमें खरे साधु-सन्तों को व्यापक दृष्टिकोणके साथ समाजको राष्ट्र और धर्म का कार्य करनेके लिए प्रेरित करना चाहिए । वे उचित मार्गदर्शन कर, समाजमें धर्मनिष्ठा बढाएं, यह नितान्त आवश्यक है ।
इस विकट घडीमें भी, अधिकतर साधु-सन्त राष्ट्र और धर्म पर होनेवाले आघातोंके विषयमें निष्क्रिय हैं । ऐसे निष्क्रिय साधु-सन्तों के कुछ उदाहरण इस ग्रन्थमें दिए हैं ।
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