त्योहार मनानेकी उचित पद्धतियां एवं अध्यात्मशास्त्र

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    त्योहार एवं उत्सवके गूढार्थ एवं शास्त्रका बोध होनेसे वे अधिक श्रद्धापूर्वक मनाए जा सकते हैं; इसलिए इस ग्रंथमें गूढार्थ एवं शास्त्र प्रस्तुत करनेपर विशेष बल दिया गया है ।
    प्रादेशिक भिन्नता, जनजीवन, उपासनाकी पद्धतियां आदिके कारण त्यौहार, उत्सव मनानेकी प्रथाओंमें भेद पाए जाते हैं । यहांपर महत्त्वपूर्ण बिंदु यह है कि शास्त्रीय आधारहीन पर्वोंको केवल लौकिक प्रथाके रूपमें मनाना अनुचित है । इन लौकिक प्रथाओंको त्यागकर शास्त्रसम्मत कृति करना आवश्यक होता है ।
    व्रतोंके संदर्भमें, उनके पीछे किसी उन्नत पुरुषका संकल्प होता है, यही उसका अध्यात्मशास्त्रीय आधार है ।

     

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