Weight | 0.145 kg |
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No of Pages | 112 |
ISBN | 978-93-91069-85-8 |
Language | Hindi |
Group | 27478 |
परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजीकी गुरुसे हुई भेंट एवं उनका गुरुसे सिखना
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साधारणतः गुरुप्राप्ति होनेके उपरान्त कुछ वर्ष गुरुके मार्गदर्शनमें कठोर साधना और सेवा करनेके पश्चात ही कोई शिष्य ‘गुरु’ पदका अधिकारी बन सकता है । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी प्रारम्भमें ईश्वरका विचार नहीं करते थे; परन्तु अध्यात्मका महत्त्व ज्ञात होनेपर उन्होंने अध्यात्मशास्त्रका अध्ययन और साधना की । उनकी लगनके कारण उन्हें शीघ्र गुरुप्राप्ति हुई । इसके पश्चात अपने गुरुके मार्गदर्शनमें साधना कर वे केवल ३ – ४ वर्षाेंमें ही गुरुपदतक पहुंच गए ! इससे उनमें उत्तम शिष्य के दर्शन होते हैं । ‘इतनी अल्प अवधिमें वे गुरुकृपाके पात्र कैसे बने ?’, इसकी जिज्ञासा कुछ लोगोंमें हो सकती है । उनकी इस जिज्ञासाका समाधान इस ग्रन्थमालासे होगा ।
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