पुण्य-पाप के प्रकार एवं उनके परिणाम

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जीवन कर्ममय है । कर्मफल अटल है । अच्छे कर्मका फल पुण्य है तथा उससे सुख प्राप्त होता है, जबकि दुष्कर्म कर्मका फल पाप है एवं उससे दुःख प्राप्त होता है । हम देखते हैं कि अनेक बार सदाचरणी होकर भी सज्जन जीवनमें दुःख भोगते हैं, जबकि गुंडे, भ्रष्टाचारी इत्यादि दुर्जन अनेक दुष्कृत्य करनेके उपरांत भी ऐश्‍वर्यादि सुखका उपभोग करते हैं । तब दुर्जनोंको उनके पापोंका फल क्यों नहीं मिलता ?, यह प्रश्‍न किसीके भी मनमें उत्पन्न हो सकता है । प्रस्तुत ग्रंथमें पाप लगने तथा न लगनेके विविध कारण, प्रायश्‍चित कर्मके साथ ही पुण्य बढानेका महत्त्व एवं पुण्य निर्माण करनेवाले कर्मोंके विषयमें सुबोध मार्गदर्शन किया गया है ।

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