आध्यात्मिक दृष्टिसे पुरुषोंके लिए उपयुक्त वस्त्र

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हिन्दू संस्कृति चैतन्यमय है । हिन्दू संस्कृतिमें स्थूल विषयोंके कारणोंके साथ ही सूक्ष्म विषयोंके कारणोंका विचार कर, अर्थात आध्यात्मिक कारणमीमांसा ध्यानमें रख रेशमी वस्त्र-उपरना, धोती-अंगरखा (कुर्ता) आदि परिधानोंको महत्त्व दिया गया है । कपडे केवल अच्छे दिखाई दें, उन्हें पहननेमें सुलभता हो, इस प्रकारका संकीर्ण विचार न कर उसे धारण करनेवाले व्यक्तिकी सात्त्विकता बढे, उसकी अनिष्ट शक्तियोंसे रक्षा हो, वह ईश्वरीय चैतन्य ग्रहण कर पाए तथा उसे ईश्वरप्राप्तिके प्रयासोंमें सहायता हो, इस प्रकारका सर्वांगसुन्दर और गहन विचार हिन्दू संस्कृतिमें किया गया है । इसके विपरीत पश्चिमी संस्कृति रज-तमप्रधान है, इसलिए जीन्स-टी-शर्ट, कोट- टाई, शर्ट-पैंट आदि वेशभूषाओंके कारण कष्टदायक स्पन्दन निर्मित होते हैं । ये वेशभूषाएं अनिष्ट शक्तियोंके आक्रमणोंको आमन्त्रित करती हैं । पश्चिमी वेशभूषासे होनेवाली आध्यात्मिक हानि और हिन्दू वेशभूषाओं के आध्यात्मिक लाभ इस ग्रन्थके विवेचनसे तथा साधकोंद्वारा किए सूक्ष्म ज्ञानसम्बन्धी परीक्षणों, साधकोंद्वारा बनाए सूक्ष्म ज्ञानसम्बन्धी चित्रों तथा साधकोंकी अनुभूतियोंसे स्पष्ट होते हैं । इस ग्रन्थकी एक अन्य विशेषता है, वेशभूषाओंके सन्दर्भमें वैज्ञानिक उपकरणोंद्वारा किए विविध प्रयोगोंका
उल्लेख ।

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आध्यात्मिक दृष्टिसे पुरुषोंके लिए उपयुक्त वस्त्र

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