Weight | 0.102 kg |
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No of Pages | 84 |
ISBN | 978-93-87508-53-8 |
Language | Hindi |
Compilers | परात्पर गुरु डॉ. जयंत बाळाजी आठवलेे तथा सद्गुरू डॉ. चारुदत्त प्रभाकर पिंगळे |
Group | 2672 |
कुम्भमेलोंकी वर्तमान दु:स्थिति
₹85 ₹77
Also available in: Marathi
कुम्भमेला अर्थात हिन्दू धर्मका एक महत्त्वपूर्ण आध्यात्मिक पर्व ! सहस्रों साधु-सन्त एवं करोडों श्रद्धालुओंकी उपस्थितिमें होनेवाले कुम्भक्षेत्रोंके मेलेे हिन्दुओंके लिए विश्वकी सबसे बडी धार्मिक यात्रा ही है ! वहांका वातावरण अत्यन्त चैतन्यमय एवं सात्त्विक होता है ।हिन्दुओंके लिए परम वन्दनीय इन कुम्भमेलोंके नियोजनकी ओर राज्यकर्ता तथा प्रशासन गम्भीरतासे देखते नहीं पाए जाते । कुम्भमेलेके लिए आरक्षित भूभागपर अतिक्रमण, नियोजनमें स्थानीय प्रशासनकी अत्यधिक अनदेखी, प्रशासनका हिन्दुओं और उनके परम वन्दनीय साधु-सन्तों की ओर ध्यान भी न देना, ये प्रकरण कुछ कुम्भमेलोंमें अत्यन्त प्रकर्षतासे दिखाई दिए । परधर्मियोंका तुष्टिकरण करनेवाले तत्कालीन राज्यकर्ताओंका हिन्दू-द्वेष भी प्रत्येक स्थानपर दिखाई दिया । इस ग्रन्थमें उदाहरणसहित इसका वर्णन किया है । राज्यकर्ताओंके हाथोंकी कठपुतली बनी पुलिसका अशोभनीय आचरण तथा नासिक-त्र्यंबकेश्वर में प्रति १२ वर्षोंमें होनेवाले कुम्भमेलेकी पूर्वतैयारीमें नियोजनके अभाववश हो रही धांधली, अनेक उदाहरणोंके माध्यमसे इस ग्रन्थमें दी है ।
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