Weight | 0.115 kg |
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No of Pages | 96 |
ISBN | 978-93-5257-146-8 |
Language | Hindi |
Compilers | परात्पर गुरु डाॅ. जयंत बाळाजी आठवले, सद्गुरु डाॅ. चारुदत्त प्रभाकर पिंगळे |
तीर्थक्षेत्र एवं तीर्थयात्रा का महत्त्व
₹95 ₹86
Also available in: Marathi
तरति पापादिकं यस्मात्, अर्थात जो पापोंसे तारता है, उसे तीर्थ कहते हैं ।
वास्तवमें तीर्थक्षेत्र केवल पापोंसे नहीं तारते, अपितु सभीसे अर्थात (भवसागरसे भी) तारते हैं । इसलिए उनके महत्त्वका वर्णन युगों-युगोंसे हो रहा है ।
तीर्थक्षेत्र मानवजातिका उद्धार करनेवाले परमस्थान हैं । इसीलिए हिन्दू धर्म और संस्कृति में तीर्थक्षेत्र एवं तीर्थयात्रा का महत्त्वपूर्ण स्थान है ।
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