आयुर्वेदानुसार आचरण कर बिना औषधियाेंके निरोगी रहें !

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‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम् ।’ अर्थात ‘शरीर धर्माचरणका प्रथम साधन है ।’ शरीर आरोग्यसम्पन्न हो, तो साधनामें शारीरिक बाधाएं नहीं आतीं । शरीर सात्त्विक रखनेपर साधनामें शीघ्र प्रगति होती है । ‘शरीर सात्त्विक कैसे रखें ?’, यह एलोपैथी नहीं, आयुर्वेद सिखाता है ।

आजकल पथ्यकी बात करें, तो ‘यह पदार्थ मत खाओ, वो मत खाओ’, इसीका स्मरण होता है । तथापि जबतक उचित समयपर, उचित मात्रामें खाना आदि मूलभूत पथ्योंका पालन नहीं किया जाता; तबतक केवल पदार्थाेंका पथ्य करनेसे लाभ नहीं होता । यह ग्रन्थ ऐसे मूलभूत पथ्योंके विषयमें मार्गदर्शक है । आजके भागदौड भरे जीवनमें भी इन पथ्योंका पालन कैसे करें, यह भी इस ग्रन्थमें दिया है ।

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आयुर्वेदानुसार आचरण कर बिना औषधियाेंके निरोगी रहें !

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