Weight | 0.030 kg |
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No of Pages | 64 |
ISBN | 978-93-91069-00-1 |
Language | Hindi |
Group | 2390 |
Compilers | परात्पर गुरु डॉ. जयंत बाळाजी आठवले, श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळ एवं अन्य |
आरती उतारनेकी शास्त्रोक्त पद्धति
₹20
Also available in: English , Marathi
उपासकके हृदयमें भक्तिदीप प्रज्वलित करने तथा देवताके कृपाशीर्वाद ग्रहण करनेका सुलभ माध्यम है ‘आरती’ । संतोंकी संकल्पशक्तिसे साकार हुई आरतियां गानेसे उपरोक्त उद्देश्य निःसंशय सफल होते हैं; परंतु तभी जब आरतियां हृदयसे, अर्थात आर्ततासे, लगनसे एवं अध्यात्मशास्त्रकी दृष्टिसे उचित पद्धतिसे गाई जाती हैं ।
- आरतीकी संपूर्ण विधिकी पद्धति क्या है ?
- आरतीके आरंभमें शंख क्यों बजाना चाहिए ?
- आरती ग्रहण करनेकी उचित पद्धति क्या है ?
- सवेरे एवं सायंकाल आरती क्यों करनी चाहिए ?
- मंत्रपुष्पांजलिका अध्यात्मशास्त्र क्या है ?
- आरतीके समय ताली व वाद्य धीमे क्यों बजाएं ?
- आरती करते समय दीपको किस प्रकार घुमाएं ?
- ‘त्वमेव माता च पिता त्वमेव’ प्रार्थना क्यों करनी चाहिए ?
- आरतीके उपरांत देवताओंका जयघोष क्यों करना चाहिए ?
- आरती उचित उच्चारणके साथ एक लयमें क्यों गानी चाहिए ?
ऐसे अनेक विषयोंपर अध्यात्मशास्त्रीय विवेचन इस लघुग्रंथमें किया है ।
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