Weight | 0.100 kg |
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No of Pages | 80 |
ISBN | 978-93-5257-090-4 |
Language | Hindi |
Compilers | परात्पर गुरु डॉ. जयंत बाळाजी आठवले एवं पू. संदीप आळशी |
गुरुका आचरण, कार्य एवं गुरुपरम्परा
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Also available in: Marathi
ज्ञानियोंके राजा गुरु महाराज ये शब्द हैं सन्त ज्ञानदेवजीके । जो ज्ञान दे, वह गुरु ! शिलासे मूर्ति बनाई जा सकती है; किन्तु उसके लिए कुशल शिल्पकारकी आवश्यकता होती है । इसी प्रकार साधक तथा शिष्य ईश्वरको प्राप्त कर सकते हैं; किन्तु इसके लिए गुरुकी आवश्यकता होती है ।
गुरु जब अपने बोधामृतसे साधक तथा शिष्योंका अज्ञान दूर कर देते हैं, तभी उन्हें ईश्वरकी प्राप्ति होती है ।
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