टीवी, मोबाइल एवं इंटरनेट के दुष्परिणामोंसे बच्चोंको बचाएं !

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बच्चे अनुकरणप्रिय होते हैं । उन्हें संस्कारोंका केवल उपदेश करनेसे काम नहीं बनता; अपितु इसके लिए अभिभावकोंका संस्कारयुक्त आचरण भी आवश्यक है । अभिभावकोंके आचरणसे बच्चोंपर अनायास ही संस्कार होते हैं । इस दृष्टिसे ‘अभिभावकोंका आचरण कैसा हो और कैसा न हो’, यह इस लघुग्रन्थमें बताया गया है ।

आजकल दूरदर्शन, मोबाइल और इंटरनेट जैसे प्रसारमाध्यमोंका झुकाव रज-तम प्रधान, असंस्कृत, विकृत, अश्लील संवाद और दृश्य की ओर है । इससे हिन्दू धर्म और संस्कृति की व्यापक हानि हो रही है । इसीलिए ‘दूरदर्शन, मोबाइल और इंटरनेट उपयोग धर्मकी शिक्षा देनेके लिए कैसे किया जा सकता है’ इसकी जानकारी भी इस लघुग्रन्थमें दी गई है । इसका अध्ययन कर, ‘भारतकी आध्यात्मिक परम्पराकी रक्षा करना’, अभिभावकों और शिक्षकों का धार्मिक कर्तव्य ही है ।

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टीवी, मोबाइल एवं इंटरनेट के दुष्परिणामोंसे बच्चोंको बचाएं !

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