आरती उतारनेकी शास्त्रोक्त पद्धति

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उपासकके हृदयमें भक्तिदीप प्रज्वलित करने तथा देवताके कृपाशीर्वाद ग्रहण करनेका सुलभ माध्यम है ‘आरती’ । संतोंकी संकल्पशक्तिसे साकार हुई आरतियां गानेसे उपरोक्त उद्देश्य निःसंशय सफल होते हैं; परंतु तभी जब आरतियां हृदयसे, अर्थात आर्ततासे, लगनसे एवं अध्यात्मशास्त्रकी दृष्टिसे उचित पद्धतिसे गाई जाती हैं ।

  • आरतीकी संपूर्ण विधिकी पद्धति क्या है ?
  • आरतीके आरंभमें शंख क्यों बजाना चाहिए ?
  • आरती ग्रहण करनेकी उचित पद्धति क्या है ?
  • सवेरे एवं सायंकाल आरती क्यों करनी चाहिए ?
  • मंत्रपुष्पांजलिका अध्यात्मशास्त्र क्या है ?
  • आरतीके समय ताली व वाद्य धीमे क्यों बजाएं ?
  • आरती करते समय दीपको किस प्रकार घुमाएं ?
  • ‘त्वमेव माता च पिता त्वमेव’ प्रार्थना क्यों करनी चाहिए ?
  • आरतीके उपरांत देवताओंका जयघोष क्यों करना चाहिए ?
  • आरती उचित उच्चारणके साथ एक लयमें क्यों गानी चाहिए ?

ऐसे अनेक विषयोंपर अध्यात्मशास्त्रीय विवेचन इस लघुग्रंथमें किया है ।

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